दरअसल लोकतंत्र ही वो उंगली है जो समूचे विपक्ष,जनता,मीडिया और अन्य संगठन जो विपक्ष की भूमिका में हैं उनको ऑक्सीजन दे रहा है। तो क्या जिस जनता के लिए,जनता के द्वारा और जनता के शासन वाली प्रक्रिया से भाजपा सत्ता में आई थी अब उसी तंत्र को म्यूट कर देना चाहती है? ये सवाल लगातार विपक्ष के द्वारा उठाया जा रहा है कि सरकार लोकतंत्र का अंत्येष्टि कर देना चाहती है। संसद में जनता के सवाल पर माइक म्यूट कर देती है तो सड़क पर सवाल पूछने वालों के यहां सरकारी एजेंसियों को भेज कर ताक़त का गलत दुरुपयोग कर रही है।
ताजा घटना का जिक्र करें तो जिस तरीके से राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द की गई, ये लोकतंत्र को म्यूटतंत्र में बदलने का खुला उद्घोष सा लगता है। आखिर क्या राहुल को इसलिए संसद से म्यूट करा दिया गया क्योंकि वो लगातार सरकार से अडानी, चीन, अर्थव्यवस्था, क्रोनी कैपटलिज्म, महंगाई और बेरोजगारी पर सवाल पूछ रहे थे? ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं कि राहुल के संसद में दिए पिछले भाषण को 18 जगह से स्पंज किया गया।
भारतीय कानून और कोर्ट के फ़ैसले का सम्मान है लेकिन जो कालक्रम है जिसका आरोप कांग्रेस भी लगा रही है। उसको लेकर जरूर संदेह किया जा सकता है कि मानहानि के केस में पहली बार किसी नेता को जेल की सजा मुकर्रर किया गया और वो भी अधिकतम। आश्चर्य इस बात पर भी है कि जिस कर्नाटक के कोल्हार में दिए भाषण पर राहुल को सजा हुई है। उस पर चुनाव आयोग ने संज्ञान क्यों नहीं लिया? और सजा गुजरात के सूरत में मिली। गुजरात मॉडल का डंका 2014 से ही इस देश मे गूंज रहा है।
मदर ऑफ डेमोक्रेसी को म्यूटतंत्र में बदलने को बल इस बात से भी मिल रहा है कि 2014 के पहले भाजपा, सरकार को घेरने के लिए जिन नारों का सहारा लेती थी अब उन्हीं नारों और पोस्टर पर दिल्ली में एफआईआर व गिरफ्तारियां हो जाती है। कन्नड़ एक्टर के हिंदुत्व पर दिए बयान पर जेल हो जाता है, तो पवन खेड़ा को एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया जाता है। देश के प्रमुख जांच एजेंसियों के छापे विपक्ष के नेताओं पर ही क्यों पड़ रहे हैं? और ये वही नेता क्यों होते हैं जो लगातार सत्तापक्ष के खिलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं? क्या भाजपा के सभी नेता पाक साफ हैं? और अगर नहीं तो उनपर छापा क्यों नहीं? इसलिए कि वो म्यूट हंै? सवाल ये भी है कि विपक्ष में रहते जिन नेताओं पर आरोप लगता हैं वो भाजपा में आते ही आरोपमुक्त कैसे हो जाते हैं?
एडीआर रिपोर्ट की ही माने तो देश में 233 सांसदों के खिलाफ़ आपराधिक मुक़दमे लंबित हैं जिनमें 159 सांसदों के खिलाफ़ हत्या, बलात्कार और अपरहण के गंभीर मामले लंबित हैं। जिनमें भाजपा के 116 सांसद दागी हंै। इन सांसदों पर कार्रवाई कब होगी? इन सारे मुद्दों पर विपक्ष लगातार हमलावर है।
तो क्या इन कार्रवाइयों से विपक्ष के अंदर खौफ़ पैदा किया जा रहा है या सरकार अपने सत्ता के लिए इन नेताओं से खौफ़जदा है इसलिए कार्रवाई कर रही है? परिणाम चाहे जो भी हो लेकिन एक बात तो स्पष्ट है सामान्यजन जो बहुत सारी समस्याओं से पहले से जूझ रहा है वो अब और डर जाएगा और हो सकता है कि सच बोलने से पहले कांपने भी लगे। अगर सरकार सच में विपक्ष के म्यूटतंत्र के आरोप को ख़ारिज करना चाहती है तो उसे जनता,छोटे मीडिया और सवाल पूछने वाले लोगों को भरोसा और ताकत देना होगा। विपक्ष जो सवाल उठा रहा है उसपर प्रधानमंत्री सहित सरकार के शीर्ष लोगों को जवाब देना होगा।
साबित करना होगा कि वो एक लोकतंत्र के प्रहरी के तौर पर काम कर रहे हैं और सभी प्रकार के आलोचनाओं को स्वीकार करते हैं क्योंकि लोकतंत्र जन और सत्ता के भरोसे से चलता है। अटल जी कहा करते थे-‘सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी-जाएंगी,पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी, मगर यह देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।
(छात्र जनसंचार एव पत्रकारिता, प्रदेश महासचिव उप्र एनएसयूआई)