पंडित जॉन अली को जब से मंत्री जी के हाथों आने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में ईमानदारी के लिए पुरस्कृत किए जाने के बाबत प्रशासन से पत्र मिला है, बेचारे बौराए घूम रहे हैं। उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि उन्होंने ऐसा क्या कर मारा था, जो प्रशासन उन्हें इस पुरस्कार के काबिल समझ बैठा। उन्होंने एक बेवा का नोट भरा बैग ही तो उसके घर के पते पर जाकर वापस लौटाया था। ईमानदारी के वायरस से ग्रसित पंडित तो महज इन इंसानियत का फर्ज अदा कर रहे थे। यह तो बेवा ने बताया था कि उसका हैंडबैग बाजार में कहीं गुम हो गया था और वह उसके वापस मिलने की उम्मीद खो बैठी थी। उसके पड़ोस में रहने वाले एक कलमघसीटू को जब पंडित की ईमानदारी का पता चला तो वह तुरंत अपने कुछ साथियों के साथ उनके घर जा पहुंचा। बस फिर क्या था, अखबार और खबरिया चैनल्स में उनकी ईमानदारी के डंके बज रहे थे। हैंडबैग में पचास हजार रुपए, एटीएम कार्ड, ड्राईविंग लाइसेंस और कुछ गहने मौजूद थे। लेकिन पंडित ने उन्हें नजर भर देखना भी मुनासिब न समझा और दिए गए पते पर लौटा आए। लेकिन ऐसे में प्रशासन का कुछ फर्र्ज तो बनता ही था। भले ही प्रशासन शहर में होने वाली तमाम बेईमानियों, चोरियों और काला बाजारी को रोकने में नाकाम रहा हो, तो क्या? उसने पंडित जी को तुरंत गणतंत्र समारोह में सम्मानित करने की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी। प्रशासन ने उनकी ईमानदारी की श्लाघा करते हुए उन्हें पत्र के माध्यम से सूचित किया कि गणतंत्र समारोह में माननीय मंत्री उन्हें सम्मानित करेंगे। पहले तो उनका दिल बगियों उछला, लेकिन समारोह से एक सप्ताह पहले जब उन्हें पता चला कि वह उन मंत्री महोदय के हाथों सम्मानित होंगे, जिनका नाम कुछ दिन पहले सीमेंट-पाईप घोटाले में सामने आया है तो वह परेशान हो उठे। कहने लगे, ‘‘लाहौल वला कूव्वत! अब मुझे वह आदमी सम्मानित करेगा, जो स्वयं करोड़ों के कीच में उलझा है।’’ उन्होंने तुरंत अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए प्रशासन के नाम खत लिख कर उनके हाथों सम्मान लेने से मना करने की सोची। लेकिन उनके परम मित्र ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह देते हुए कहा, ‘‘भाई क्यों मुसीबत मोल ले रहे हो? एक तो तुम सरकारी नौकर हो और दूसरे उस मंत्री से पंगा ले रहे हो, जो हमेशा कुर्सी सिर पर उठाए घूमता है? अंडमान जाना है क्या?’’तब से पंडित सोच रहे हैं कि लोग तो सड़कें, नहरें, सीमेंट, सरिया, पाइपें, ईंट-गारा और न जाने क्या-क्या पचा जाते हैं और वह एक हैंडबैग भी…। इस ईमानदारी के वायरस ने उन्हें समाज में अलग-थलग कर दिया है। अब वह पूरी दुनिया से उस हकीम का पता पूछ रहे हैं, जो इस वायरस को मारने की दवा दे सके। इससे कम से कम ऐसे मंत्री जी के हाथों पुरस्कार लेने पर उन्हें उनकी आत्मा तो न कोसेगी।

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