भाई द्वारा बहन की रक्षा का वचन देने के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाले त्यौहार रक्षाबंधन के मायने वर्तमान युग में बदल गए हैं. रिश्तों के इस पर्व पर अब भावनाओं से ज्यादा राखी की कीमत देखी जाने लगी है. बदले जमाने के साथ रक्षाबंधन मनाने के तौर-तरीकों में तो बदलाव आया ही है, कच्चे धागों के रूप में भाई की कलाई पर बांधा जाने वाला यह बंधन अब सोने-चांदी की जंजीरों का रूप ले चुका है. भाई-बहन के अटूट प्यार के इस पर्व पर आधुनिकता का रंग सिर चढ़कर बोल रहा है. समय बदलने के साथ-साथ राखियों का अंदाज पूरी तरह बदल गया है. हर वर्ष रक्षाबंधन पर अब बाजार में सैकड़ों तरह की नई राखियां आती हैं. लोगों में नये-नये डिजाइनों वाली महंगी राखियों के प्रति दीवानगी इस कदर बढ़ गई है कि अब राखी बनाने वाले बड़े-बड़े निर्माताओं ने तो डिजाइनरों की सेवाएं लेनी शुरू कर दी हैं. राखी का पर्व बीतते ही अगले साल के लिए डिजाइन तैयार करने की चिंता शुरू हो जाती है. क्योंकि, ग्राहक हर बार नये-नये डिजाइन्स की राखी की डिमांड करते हैं. राखी के जिन डिजाइनों में प्राचीन कलात्मकता का प्रयोग किया जाता है, वैसी राखियां महंगी होने के बावजूद ज्यादा बिकती हैं.
बाजारों में अब पारम्परिक सौन्दर्य के साथ-साथ आधुनिकता का भी तड़का लगा है. परम्परागत राखियों के साथ-साथ बाजार इलेक्ट्रॉनिक राखियों और हैरी पॉटर, फेंगसुई, स्पाइडरमैन, मोगली, मिक्की माउस, छोटा भीम, बेनटेन, डोरीमॉन, वीडियो गेम, कम्प्यूटर, स्मार्टफोन इत्यादि तरह-तरह के डिजाइनों वाली आकर्षक राखियों से भरे नजर आते हैं. महिलाओं तथा बच्चों का आकर्षण भी साधारण राखियों की बजाय नये-नये डिजाइनों वाली इन हाईटैक राखियों की ओर ही देखा जा रहा है. हाईटेक राखियों में गैजेट राखियां, 3 डी और एलईडी तथा म्यूजिकल राखियां शामिल हैं. अधिकांश लोग अब डिजाइनर, हाईटेक और स्वदेशी राखियों को ही पसंद करने लगे हैं. राखी निर्माताओं के साथ-साथ अधिकांश राखी विक्रेताओं का भी यही कहना है कि टेक्नोलॉजी के इस युग में लोग अब हाईटेक और स्वदेशी राखियों की ही ज्यादा मांग करते हैं. पूरी तरह से स्वदेशी स्टोन की रंग-बिरंगी आकर्षक हाईटेक राखियों की डिमांड बहुत ज्यादा है. राखी निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल चीन से ही आयात किया जाता है लेकिन डिजाइनर राखियों का डिजाइन देश में ही तैयार किया जाता है. बच्चों को आकर्षित करने के लिए म्यूजिकल राखियों के अलावा घड़ी और छोटे-छोटे सुंदर खिलौने लगी राखियां भी बाजार में उपलब्ध हैं.
कई वर्षों से राखी बेचने का कार्य कर रहे दुकानदार राजेश कुमार बताते हैं कि अब रंग-बिरंगी राखियों का जमाना लद गया है और फैंसी हाईटेक राखियों के इस दौर में हर कोई राखियों के नए डिजाइनों की तलाश में रहता है. राजेश बताते हैं कि एक समय था, जब रेशम के साधारण धागे ही अधिक मात्रा में बिकते थे किन्तु अब राखियों की डिजाइनों में भी इलेक्ट्रॉनिक राखियों की मांग बहुत बढ़ गई है. घड़ीनुमा व वीडियोगेम वाली राखियां छोटे बच्चों की पहली पसंद बनी हुई हैं. हालांकि लौंग, इलायची व सुपारी वाली कलात्मक राखियां अब भी पसंद की जाती हैं. वह बताते हैं कि ग्रामीण महिलाओं का झुकाव अब भी पारम्परिक राखियों की ओर ही देखने को मिल रहा है. अमीर लोगों की पसंद अब फैंसी राखियों को छोड़कर सोने-चांदी की राखियों पर टिकी हुई हैं. चांदी की जंजीरनुमा राखियां तो अब आम हो चली हैं.
एक दुकान पर राखी खरीद रही पूनम शर्मा से जब उनकी पसंद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि राखी खरीदते समय वह इस बात का ध्यान रखती हैं कि उसके भाईयों की कलाई पर कौन-सी राखी ज्यादा खूबसूरत और आकर्षक लगेगी. पूनम ने बताया कि उन्हें अब परम्परागत गोल राखियों की बजाय नये-नये डिजाइनों वाली इलेक्ट्रॉनिक राखियां ज्यादा पसंद हैं जबकि उन्होंने छोटे बच्चों के लिए मिक्की माउस, स्पाइडरमैन, मोगली इत्यादि बच्चों को लुभाने वाले डिजाइनों की राखियां खरीदी हैं. राखियां खरीद रही एक महिला के साथ आए बच्चों से उनकी पसंद के बारे में पूछने पर उन्होंने बताया कि उन्हें हैरी पॉटर, स्पाइडरमैन व मिक्की माउस की राखियां बहुत पसंद आई हैं. फेरी लगाकर राखियां बेचने वाले 54 वर्षीय हुक्मचंद कहते हैं कि बदले जमाने ने ऐसी हवा दी है कि लोग अब फेरीवालों से सस्ती आकर्षक फैंसी राखियां खरीदने की बजाय बड़ी-बड़ी दुकानों या गिफ्ट गैलरियों से महंगी राखियां ऊंचे दामों पर खरीदना अपनी शान समझते हैं.
आधुनिकता के इस दौर में राखी बाजार में इस बार पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से एक अनूठी और सराहनीय पहल देखने को मिली है. इस साल एक ऐसी राखी ने बाजार में दस्तक दी है, जो गाय के गोबर से बनाई गई है. उत्तर प्रदेश के बिजनौर में नगीना स्थित श्रीकृष्ण गौशाला में देशी नस्ल की लाल सिंधी गाय के गोबर से राखियों का निर्माण किया जा रहा है. गोबर को राखी का आकार देकर सुखाया जाता है और फिर उसे सजाकर उसके साथ सूत का धागा बांधा जाता है. अजमेर जिले के केकड़ी कस्बे में भी ऐसे ही अभियान की शुरूआत की गई है, जिसके तहत गौवंश को बचाने के लिए राखी तथा भगवान की मूर्तियों सहित गाय के गोबर से कई तरह की वस्तुएं बनाई जा रही हैं. एक ओर जहां बाजार में सामान्य तौर पर बिकने वाली आधुनिक राखियों में चीन से आयातित सामान का इस्तेमाल होता है, जिसमें प्लास्टिक और धातु होने के साथ ही पेंट का भी इस्तेमाल होता है, जो पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुंचाते हैं. ऐसी राखियां टूटने के बाद एकदम से नष्ट भी नहीं होतीं. गाय के गोबर से बनी राखियां किसी भी प्रकार से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाएंगी क्योंकि इन राखियों का काम खत्म होने के बाद इन्हें आसानी से मिट्टी में दबाया जा सकेगा, जिससे जमीन की उर्वरता बढ़ेगी. इन राखियों को खरीदने में कुछ संस्थाओं ने दिलचस्पी भी दिखाई है.