नयी दिल्ली । पूंजी बाजार नियामक सेबी स्मार्ट शहरों और दूसरे शहरों में नियोजन और शहरी विकास कार्यों में काम कर रही पंजीकृत इकाइयों की मदद के लिये नगर निगम बांड (मुनि बांड) जारी करने के अपने नियमों में ढील देने पर विचार कर रहा है। इसके तहत इन इकाइयों को ऋण प्रतिभूति जारी कर कोष जुटाने और उसे सूचीबद्ध कराने की अनुमति मिल सकती है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पांच साल पहले नगर निगमों द्वारा ऋण प्रतिभूतियों की सूचीबद्धता और निर्गम (आईएलडीएम) नियमन में संशोधन किया था। उसके बाद से सात नगर निगमों ने ऋण प्रतिभूतियां जारी कर करीब 1,400 करोड़ रुपये जुटाये है। नगर निगम के बांड को आम तौर पर मुनी बांड कहा जाता है। अधिकारियों ने कहा कि नियामक ने अब बड़ी संख्या में शहरी विकास कार्यों में लगी अन्य इकाइयों को भी कोष जुटाने के लिये इस मार्ग के उपयोग की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है। इन इकाइयों में केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी स्मार्ट सिटीज मिशन के तहत स्थापित विशेष उद्देशीय इकाइयां भी शामिल हैं। अधिकारियों ने कहा कि प्रस्तावित नियम सेबी के निदेशक मंडल की मंजूरी के लिये रखा जाएगा। निदेशक मंडल की बैठक इस महीने होनी है। आईएलडीएम नियमन में संशोधन के लिये उद्योग और बाजार प्रतिभागियों से मिली जानकारी के बाद सेबी ने इन नियमों में संशोधन को लेकर जून में परामर्श पक्रिया शुरू की। इस बारे में सुझाव और टिप्पणियां प्राप्त करने के बाद नियामक ने नियमन में संशोधन का निर्णय किया ताकि कोष जुटाने में लचीलापन उपलब्ध कराने के साथ निवेशकों की सुरक्षा को सुदृढ़ किया जा सके। मौजूदा व्यवस्था के तहत कोष जुटाने का यह रास्ता केवल उन नगर निगमों के लिये उपलब्ध है जिन्हें संविधान के संबंधित अनुच्छेदों में परिभाषित किया गया है या कारपोरेट नगर निगम इकाइयां जिनका गठन कोष जुटाने को लेकर नगर निगम के अनुषंगी के रूप में हुआ है। सेबी ने अब शहरी विकास प्राधिकरणों तथा शहर नियोजन एजेंसी जैसी इकाइयों को भी मुनी बांड जारी करने की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है, जो नगर निगम की तरह योजना बनाने और शहरी विकास परियोजनाओं के क्रियान्वयन का काम करते हैं। चूंकि ये इकाइयां संविधान के तहत नगर निगम के दायरे में नहीं आती, उन्हें अब तक मुनी बांड से कोष जुटाने की अनुमति नहीं है।