भारत के भीतर एक पाकिस्तान भी बसता है। उसके चेहरे कई हो सकते हैं, जुबां और भाषाएं अलग-अलग हो सकती हैं, उनके मंसूबे भी अज्ञात हैं, लेकिन अफवाहों के स्वर एक जैसे हैं, जो पाकिस्तान की ‘डिजिटल जंग’ को पुख्ता कर रहे हैं। इस संदर्भ में कई नाम लिए जा सकते हैं, लेकिन ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का हिस्सा रहीं शेहला रशीद ने ‘राजद्रोह’ की हदें भी लांघ दी हैं। राजद्रोह या देशद्रोह की कानूनी परिभाषा और धाराएं क्या होती हैं, शेहला के आरोपों के संदर्भ में वे लागू होती हैं या नहीं, लेकिन इसे सेना को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश करार जरूर दिया जा सकता है। जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला ने एक के बाद एक कुल 10 ट्वीट्स करके भारत की छवि पर भी कालिख पोतने का दुस्साहस किया है। ट्वीट्स का लब्बोलुआब यह है कि कश्मीर में सेना लोगों पर अत्याचार कर रही है। सैनिक रात के वक्त घरों में जबरन घुस रहे हैं। लड़कों को जबरन उठाया जा रहा है। एक आर्मी कैंप में लोगों को टार्चर किया गया, पास में एक माइक लगाकर उनकी चीखें रिकार्ड की गइर्ं और मोहल्लों में जाकर उन चीखों को सुनाकर दहशत और खौफ पैदा किया जा रहा है। आटे को फर्श पर बिखेरा जा रहा है और चावल में तेल मिलाया जा रहा है। यह चित्रण अनुच्छेद 370 खत्म करने के बाद की कश्मीर घाटी का है, जम्मू और लद्दाख का नहीं है। आईएएस की नौकरी छोड़ कर शाह फैसल ने जो सियासी पार्टी बनाई थी, शेहला रशीद भी अब उसका हिस्सा हैं। ये गंभीर और राष्ट्र-विरोधी आरोप लगाने वाली शख्स ने किसी भी तरह का सबूत पेश नहीं किया है, जो उनकी बात की पुष्टि भी कर सके। शेहला को अपने आरोपों के समर्थन में कोई ऑडियो, वीडियो, आवाज, कोई लिखित सबूत तो पेश करना चाहिए था। किसी के कहने या ब्रीफ करने पर ही इतने गंभीर आरोप लगाना वाकई एक जघन्य अपराध है। बेशक शेहला रशीद कोई बड़ी शख्सियत नहीं हैं, लेकिन उनके दुष्प्रचारी ट्वीट्स का इस्तेमाल पाकिस्तान समेत अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी किया है, नतीजतन कश्मीर में भारतीय सेना की भूमिका लांछित हुई है। निश्चित रूप से यह एक बड़ा अपराध है। दिलचस्प है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी शेहला के आरोपों को दोहराते हुए कश्मीर में मानवाधिकार हनन की बात कही है। यथार्थ यह है कि भारतीय सैनिक और सुरक्षा बलों के जवान कश्मीरी सरहदों पर और घाटी की हिफाजत के लिए लगातार ‘शहादत’ देते रहे हैं। भयंकर बाढ़ के दौरान सेना ने ही असंख्य कश्मीरियों की जान बचाई थी और मौजूदा हालात में भी सैनिकों ने दूध, ब्रेड और अंडे, अनाज की सप्लाई घरों तक की है। क्या ऐसी सेना ‘अत्याचारी’ हो सकती है? क्या सेना पर ऐसे हमले करके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का एजेंडा पूरा नहीं किया जा रहा है? शेहला के खिलाफ दिल्ली पुलिस में एक शिकायत दर्ज की गई है। अलख आलोक श्रीवास्तव नाम के राष्ट्रवादी वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर शेहला को गिरफ्तार करने और देशद्रोह का केस चलाने की मांग की है। कानून अपना काम करेगा, लेकिन देश के भीतर ही कुछ ‘पाकिस्तानियों’ का संज्ञान जरूर लिया जाना चाहिए। बेशक जम्मू-कश्मीर के हालात पटरी पर लौट रहे हैं। ऐसा ऐतिहासिक निर्णय लेने के बाद कुछ तिलमिलाहट स्वाभाविक है। जम्मू और लद्दाख तो अपेक्षाकृत सामान्य हो चुके हैं। घाटी के श्रीनगर और आसपास के 190 से ज्यादा प्राइमरी स्कूल खुल चुके हैं। हाजिरी भी बहुत जल्द बढ़ने लगेगी। आधे से ज्यादा फोन की लैंडलाइन फिर से चालू हो गई है। सड़कों पर आवागमन दिखाई पड़ता है। बेशक अब भी असहमति के कई स्वर सुनाई देते हैं। यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। सरकार का दायित्व है कि उन असहमतियों को भी संतुष्ट करे। हालांकि हमारी सेना औने-पौने आरोपों को लेकर खामोश और तटस्थ रहती है, लेकिन ऐसी ‘अत्याचारी’ छवि का खंडन जरूरी था, लिहाजा सेना ने भी शेहला के आरोपों को ‘झूठा’ और ‘बेबुनियाद’ करार दिया है। अब कानून की भूमिका की प्रतीक्षा है।