शुभम अग्रवाल(एग्जीक्यूटिव एडिटर): सावन मास भगवान महादेव को समर्पित है और इस मास में शिव की भक्ति करने से सुख-समृद्धि, आरोग्य के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए शिवभक्त इस मास में भगवान भोलेनाथ की भक्ति श्रद्धापूर्वक करते हैं। सावन मास के उपवास विशेषकर सोमवार के व्रत का विशेष महत्व है। शिव भक्ति के लिए भक्त इन दिनों उपवास करते हैं। इस दौरान कुछ खास नियमों का पालन करना होता है और कुछ सावधानियां भी बरतनी होती है।

उपवास में मिलती है शरीर को शक्ति –
सावन मास में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत को छोड़कर कुछ समय धरती पर निवास करते हैं। इसलिए इस दौरान महादेव की आराधना करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। मान्यता है कि इस मास में व्रत रखना स्वास्थ्य के लाभदायक होता है। इस समय जल जनित और वायु जनित रोगों के होने की संभावना ज्यादा होती है क्योंकि इस वक्त वातावरण में सूक्ष्मजीवों के प्रजनन में काफी वृद्धि होती है। व्रत के जरिए शरीर को विषैले पदार्थों से मुक्ति मिलती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता दुरुस्त होती है।

उपवास में करें इन चीजों का सेवन-
सावन मास में सूर्योदय के पहले उठें और अपने दिन की शुरुआत गुनगुने पानी से से करें। स्नान आदि से निवृत्त होकर शिव आराधना करें। अपनी इच्छा और शरीर की प्रकृति के अनुसार व्रत का पालन कर सकते है। फलाहार में साबूदाना की खीर, कूट्टू के आटे का हलवा या पूरियां, या फलों का नाश्ता ले सकते हैं। शाम को चाय पी सकते हैं। व्रते के दौरान शरीर में पानी की कमी न होने दें और 8 से 10 गिलास पानी का सेवन करें। फलों में संतरा, मौसमी, अंगूर, लीची और सूखे मेवे का सेवन ज्यादा करें।

मिट्टी के शिवलिंग की करें पूजा-
भगवान भोलेनाथ की आराधना करने के लिए संभव हो तो मिट्टी के शिवलिंग बनाएं। शिवलिंग पर भांग और धतूरा समर्पित करें। शाम के समय महादेव की आरती करें और जरूरतमंद या किसी विद्वान ब्राह्मण को दूध का दान करें। सावन मास में यदि आपके दरवाजे पर सांड या गाय आ जाएं तो उसको कुछ खाने को दें।

राशि अनुसार करें सावन में शिव आराधना, पूरी होगी सभी मनोकामना-
सावन मास में शिवभक्त भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए अनेकों उपाय करते हैं। भगवान भोलेनाथ अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उनको मनचाहा वरदान प्रदान करते हैं। सावन मास में राशि अनुसार भोलेनाथ की आराधना करने से शिवभक्त की सबी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आइए जानते हैं राशि अनुसार क्या काम करें की सावन में शिव की कृपा प्राप्त हो जाए।

मेष

इस राशि के लोगों को सावन मास में गुड़ के साथ शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए। इस उपाय से सुख-समृद्धि मिलेगी।

वृष

इस राशि के लोगों को सावन में महादेव को दही, शक्कर चावल, सफेद चंदन चढ़ाना चाहिए। इसके साथ शिव आराधना में सफेद रंग के फूलों का प्रयोग करना चाहिए।

मिथुन

इस राशि के लोगों को गन्ने के रस से शिवलिंग का जलाभिषेक करना चाहिए। इस उपाय से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होगी।

कर्क

इस राशि के लोगों को सावन मास में शिवलिंग पर घी चढ़ाना चाहिए। यह उपाय इस राशि के लिए फायदेमंद होता है।

सिंह

इस राशि के जातकों को सावन में शिवलिंग का गुड़ के जल से अभिषेक करना चाहिए।

कन्या

कन्या राशि वालों को सावन मास महादेव को भांग और पान समर्पित करना चाहिए।

तुला

इस राशि के लोगों को सावन में शिवजी को दही, शहद और इत्र समर्पित करना चाहिए।

वृश्चिक

वृश्चिक राशि के जातकों को सावन मास में पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

धनु

इस राशि के लोगों को सावन में हल्दी मिले दूध शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

मकर

मकर राशि के लोगों को सावन मास में नारियल के पानी से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

कुंभ

कुंभ राशि के लोगों को सावन मास में तिल के तेल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

मीन

मीन राशि के जातकों को सावन मास में केसरयुक्त दूध से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए।

सावन में इन कार्यों से करें परहेज, मिलेगी शिव की कृपा:-

सावन मास भगवान भोलोनाथ का प्रिय मास है और इस महीने महादेव की आराधना करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है। सावन मास में भक्त शिवालयों में शिवलिंग पर जलाभिषेक के साथ विभिन्न शिवप्रिय पदार्थों को अर्पित करते हैं। कैलाशपति शिव अपने भक्त की उपासना से प्रसन्न होकर उसको सुख-समृद्धि और मोक्ष का वरदान प्रदान करते हैं।

भोलेनाथ को जंगली और जहरीले पदार्थों से आसक्ति है। इसलिए उनको भांग-धतूरा, बिल्वपत्र, बिल्वफल आदि समर्पित किए जाते हैं, लेकिन भोलोनाथ की आराधना में कुछ सावधानी भी बरतना जरूरी है। सावन मास में कुछ बातों का ख्याल रखकर शिवकृपा को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।

इन खाद्य पदार्थों का करें त्याग:-

सावन मास में खान-पान को लेकर विशेष सावधानी रखना पड़ती है। इसके अंतर्गत तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए। अर्थात इस मास में मांस, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए। इसके साथ प्याज, लहसुन, हरी सब्जियों और बैंगन को भी इस मास में नहीं खाना चाहिए। बैंगन को अशुद्ध सब्जी माना जाता है। इसलिए लोग द्वादशी और चतुर्दशी तिथि पर इसका सेवन नहीं करते हैं।

सावन मास में शिवलिंग के दूग्धाभिषेक का भी खास महत्व है इसलिए इसलिए इस मास में दूध के सेवन का भी निषेध बतलाया गया है। इसका एक कारण यह भी है कि इस समय जानवर हरा चारा खाते हैं जिसमें अशुद्धि हो सकती है, ऐसे जानवरों के दूध का सेवन करने से बीमार होने का खतरा रहता है।

शिवलिंग पर न चढ़ाएं हल्दी:-

शिवलिंग पर जलाभिषेक के बाद अबीर, गुलाल, कुमकुम, आदि चढ़ाए जाने का प्रावधान है, लेकिन शिवलिंग पर हल्दी अर्पित नहीं की जाती है। हल्दी को जलाधारी पर चढ़ाया जाता है। सावन मास में शरीर के साथ मन की शुद्धि होना भी जरूरी है इसलिए मन में बुरे विचार नहीं लाना चाहिए इनका त्याग कर देना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और माता-पिता, गुरु, जीवनसाथी और बुजुर्गों का अपमान नहीं करना चाहिए।

अमोघ रक्षाकवच है महामृत्युंजय महामंत्र, इतने तरीके से होता है प्रयोग:-

कैलाशपति महादेव को भोले भंडारी भोलेनाथ कहा जाता है। क्योंकि वो अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं और मात्र छोटे से उपाय से वो उनकी बड़ी से बड़ी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। भगवान शिव की उपासना से भक्तों के कष्टों का नाश होता है और सुख-संपत्ति के साथ आरोग्य और अंत में मोक्ष का वरदान मिलता है।

महादेव के अनेक सिद्ध मंत्र हैं, जिनके जाप से भक्तो की मनचाही मुराद पूरी होती है। महादेव का एक ऐसा ही अमोघ रक्षाकवच है महामृत्युंजय मंत्र, जिसके जप से सुख-समृद्धि के साथ बेहतर स्वास्थ्य का वरदान शिव भक्त को मिलता है। अन्नत ऊर्जा और अपार शक्ति से भरपूर इस मंत्र को माना जाता है। सृष्टि में महादेव को सर्वशक्तिमान और ब्रह्माण्ड का स्वामी माना जाता है। इसलिए भगवान शिव के इस मंत्र को महामंत्र का संज्ञा दी गई है। इस मंत्र का प्रयोग कई तरह से किया जाता है।

एकाक्षरी महामृत्युंजय मंत्र – ‘हौं’

उत्तम स्वास्थ्य के लिए ब्रह्म मुहूर्त में इस मंत्र का जाप किया जाता है। इससे महादेव के वरदान से शरीर स्वस्थ्य और सेहत दुरुस्थ रहती है।

त्रयक्षरी महामृत्युंजय मंत्र – ‘ऊं जूं स:’

कोई सामान्य रोग यदि लंबे समय से परेशान कर रहा हो तो इस मंत्र का जाप रात्रि में सोने पहले कम से कम 27 बार करें। इससे शिवकृपा मिलती है और स्वास्थ्य में सुधार होता है।

चतुराक्षी महामृत्युंजय मंत्र – ‘ओम हौं जूं स:’

जब आपकी कुंडली में किसी खतरनाक दुर्घटना के या किसी गंभीर बीमारी की अवस्था में सर्जरी के योग हों, तब ऐसी अवस्था में इस तरह के योग को टालने के लिए सुबह शिवलिंग पर जल चढ़ाने के बाद इस मंत्र की तीन माला का जाप करें।

दशाक्षरी महामृत्युंजय महामंत्र – ‘ओम जूं स: माम पालय पालय’

कुंडली में अल्पायु योग या स्वास्थ्य की गंभीर समस्या होने पर इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य में सुधार होने के साथ वह लंबी उम्र को प्राप्त करता है। इस मंत्र को अमृत मृत्युंजय मंत्र भी कहा जाता है।

मृत संजीवनी महामंत्युंजय मंत्र –

ओम हौं जूं सः ओम भूर्भुवः स्वः

ओम त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्

ओम स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ओम !!

महामृत्युंजय मंत्र का जाप विधिपूर्वक करने से गंभीर रोग से फायदा होता है और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इसके जाप से कष्टों का नाश होता है और सुखों की प्राप्ति होती है।

शिव जलाभिषेक से मिलती हे सकारात्मक ऊर्जा और होता है पापों का नाश:-

भगवान भोलेनाथ को प्रकृति से बेहद लगाव है। इसलिए उनका निवास भी प्रकृति की सुरम्य छटा बिखेरने वाले कैलाश पर्वत पर है। धरती को पापमुक्त करने वाली मोक्षदायिनी गंगा उनकी जटाओं में विराजमान है। सर्प उनका श्रंगार है,। मृगछाल के उनके वस्त्र है। बिल्वपत्र उनको प्रिय है, भांग, धतूरे का भोलेनाथ भोग लगाते हैं औऱ इन सबसे बढ़कर जलाभिषेक से वो प्रसन्न और त्रप्त होते हैं।

जलाभिषेक से होता है कष्टों का नाश:-

मान्यता है कि शिवलिंग पर जल की धारा समर्पित करने से भक्तों का कल्याण हो जाता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसलिए पंचतत्व में जल को प्रधान तत्व मानते हुए शिवाभिषेक का बहुत महत्व बतलाया गया है। शास्त्रों में जल में विष्णु का वास माना गया है, जबकि शिव पुराण में शिव को साक्षात जल माना गया है। जल को नार भी कहा गया है। इसलिए भगवान लक्षामीनारायण ने कहा है कि जल से पृथ्वी की गरमी दूर होती है इसलिए जो शिवभक्त शिवलिंग पर जलधारा अर्पित करता है उसके सभा दैहिक, दैविक और भौतिक तापों का नाश हो जाता है।

जलाभिषेक से होता है नकारात्मक ऊर्जा का नाश:-

यह भी मान्यता है कि शिव जलाभिषेक से मानव के अंदर संग्रहित नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है और उसके शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है। आध्यात्मिक कारण यह भी है कि मस्तिष्क के केंद्र यानी इंसान के मस्तक के मध्य में आग्नेय चक्र होता है, जो पिंगला और इड़ा नाडियों का मिलन स्थल है। इससे मानव की सोचने-समझने की शक्ति का संचालन होता है। इसको शिव स्थान कहा जाता है। इसलिए कहा जाता है कि मस्तिष्क शांत रहे और उसमें शीतलता बनी रहे इसलिए शिव को जल समर्पित किया जाता है।

इस संबंध में वैज्ञानिकों का कहना है कि सभी ज्योतिर्लिंगों में रेडिएशन पाया जाता है, जो परमाणु संयंत्र की तरह रेडियो एक्टिव ऊर्जा से परिपूर्ण होते हैं। इसलिए ऊर्जा को शांत रखने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा है। जलाभिषेक का यही जल नदियों में मिलकर औषधिय रूप ले लेता है।

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