sansad

नई दिल्ली, 01 अगस्त । समयबद्ध तरीके से ऋण से जुड़े मुद्दों का निपटारा करने, समाधान निकालने तथा शेयरधारकों के हितों के बारे में अधिक स्पष्टता प्रदान करने के मकसद से लाए गए दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (संशोधन) विधेयक को संसद ने बृहस्पतिवार को मंजूरी दे दी।  यह विधेयक राज्यसभा में पारित हो चुका है।

लोकसभा में विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से मूल कानून में किए गए संशोधनों की काफी समय से जरूरत महसूस की जा रही थी। 2016 में मूल संहिता (आईबीसी) देश में नहीं लायी गयी थी। तब देश में ऋणशोधन अक्षमता ढांचा अच्छी स्थिति में नहीं था तथा विधेयक का मकसद हासिल नहीं हो पा रहा था और इसके पर्याप्त नतीजे नहीं मिल रहे थे।

वित्त मंत्री ने कहा कि विधेयक के जरिये सात खंडों का संशोधन किया जाएगा। इनका मकसद कानून की अस्पष्टता को दूर करना है। इसका मुख्य उद्देश्य समयबद्ध तरीके से ऋण से जुड़े मुद्दों का निपटारा करना एवं समाधान निकालना है। उन्होंने कहा कि हमने महसूस किया कि कुछ मामलों में स्पष्टता के अभाव में अदालतों और राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण (एनसीएलटी) द्वारा दी गई व्याख्या से कई महत्वपूर्ण सवाल पैदा हुए हैं और इस संबंध में स्पष्टता की जरूरत है।

वित्त मंत्री ने कहा कि देश में ऐसे अनेक उदाहण रहे हैं जहां कारोबार, उद्योग को परेशानी की स्थिति से गुजरना पड़ता है लेकिन सभी का रास्ता सिर्फ ऐसे निकायों को बेचना या लिक्विडेशन नहीं हो सकता, इसके अन्य उपाय भी हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह उद्देश्य होना चाहिए कि कंपनी को मरने नहीं दें, अगर कंपनी को बनाये रखने का कोई विकल्प है, तो रास्ता निकाला जा सकता है।

सीतारमण ने इस संदर्भ में कर्नाटक में एक उद्योगपति(कैफे काफी डे के संस्थापक) की मौत से जुड़े हादसे का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में संहिता की भूमिका हो सकती है, ताकि कोई कारोबार विफल होने पर उसे कमतर न माना जाए या अभिशाप नहीं समझा जाए। हमें सम्मानजनक रास्ता देना चाहिए। मंत्री के जवाब के बाद निचले सदन ने कुछ सदस्यों के संशोधनों को अस्वीकार करते हुए विधेयक को मंजूरी दे दी। यह विधेयक पहले ही राज्यसभा में पारित हो चुका है। वित्त एवं कंपनी मामलों की मंत्री ने जेट एयरवेज से जुड़े मामलों का भी जिक्र किया और कहा कि दिवाला कानून समिति ने सीमापार दिवाला संबंधित मॉडल सुझाया है, जिस पर विभिन्न पक्षकारों से चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा कि यह संहिता मकान या फ्लैट खरीददारों से जुड़े मामलों के निस्तारण में भी मदद करेगी।

सीतारमण ने कहा कि इस संबंध में संहिता में लाये गये संशोधनों का मुख्य उद्देश्य समयबद्ध तरीके से ऋणशोधन अक्षमता का समाधान निकालना और अधिक से अधिक मूल्य हासिल करना है। उन्होंने कहा कि अंशधारकों के हितों के बीच संतुलन कायम करना एक मुद्दा बनता जा रहा है और इसी कारण से इन संशोधनों को लाया गया है।

वित्त मंत्री ने कहा कि समाधान के तहत हमारा मकसद विलय, पुनर्विलय आदि की प्रक्रिया में स्पष्टता लाना हैं। उन्होंने कहा कि सीआईआरपी (निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया) 330 दिनों में होगी।  विधेयक के कारणों एवं उद्देश्यों के अनुसार, मूल कानून में प्रस्तावित संशोधनों से आवेदनों को समय रहते स्वीकार किया जा सकेगा और निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया को समय रहते पूरा किया जा सकेगा।

इस विधेयक में यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि संबंधित प्राधिकार द्वारा किसी आवेदन को 14 दिनों के भीतर स्वीकार या खारिज नहीं किया गया तो उसे इसके बारे में लिखित में कारण बताना पड़ेगा।  विधेयक में सीआईआरपी (निगमित दिवाला समाधान प्रक्रिया) के पूरा होने की एक समय सीमा तय की गई है, जो कुल 330 दिनों की है। इसी सीमा के भीतर मुकदमे एवं अन्य न्यायिक प्रक्रिया शामिल होंगी।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *