नई दिल्ली, 25 जुलाई । अंतर्राज्यिक नदी जल विवादों की न्याय प्रक्रिया को सरल और कारगर बनाने तथा वर्तमान विधिक और संस्थगत संरचना को संतुलित बनाने के उद्देश्य वाला अंतर्राज्यिक नदी जल विवाद संशोधन विधेयक-2019 बृहस्पतिवार को लोकसभा में पेश हुआ । विपक्षी दलों ने इसका विरोध करते हुए आरोप लगाया कि इस बारे में राज्यों से विचार विमर्श नहीं किया गया। जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने यह विधेयक पेश किया । उन्होंने कहा कि 2013 में राज्यों से विचार विमर्श किया गया था और 2017 में संबंधित विधेयक लाया गया था । इसके बाद विधेयक स्थायी समिति को भेजा गया । इस विधेयक के मसौदे पर भी चर्चा हुई । लेकिन 16वीं लोकसभा की अवधि समाप्त होने पर इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका। शेखावत ने कहा, ‘‘ जल विवादों से संबंधित नौ अलग अलग न्यायाधिकरण हैं । इनमें से चार न्यायाधिकरण को फैसला सुनाने में 10 से 28 वर्ष लगे । न्यायाधिकरण के आदेश पारित करने के संबंध में कोई समय सीमा तय नहीं है । भाजपा के निशिकांत दूबे ने कहा कि जल विवादों के जल्दी निपटारे के लिये इस विधेयक का पारित होना जरूरी है । लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, बीजद के भतृहरि माहताब और द्रमुक के टी आर बालू ने विधेयक पेश करने का विरोध करते हुए कहा कि जल राज्य सूची का विषय है और इस बारे में राज्यों से विचार विमर्श नहीं किया गया । विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि अंतर्राज्यिक नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक-2019 विभिन्न राज्यों के बीच नदी जल विवादों के हल को सरल बनाने तथा वर्तमान विधिक और संस्थागत संरचना को संतुलित बनाने के लिए है। प्रस्तावित विधेयक अनेक अधिकरणों के स्थान पर (अनेक न्यायपीठों के साथ) एकल स्थायी अधिकरण का उपबंध करने के लिए भी है, जो एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम छह सदस्य (तीन न्यायिक सदस्य और तीनविशेषज्ञ सदस्य) से मिलकर बनेगा।विधेयक प्रत्येक नदी बेसिन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर पारदर्शी डाटा संग्रहण प्रणाली का उपबंध करने के लिये भी है । इस प्रायोजन के लिए डाटा बैंक और सूचना प्रणाली को बनाए रखने के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक अभिकरण नियुक्त या अधिकृत किया जाएगा।