➡️ नारी सशक्तिकरण पर विशेष लेख

स्पेस प्रहरी: संवादाता मसकनवा अंकित कुमार

महिला सशक्तिकरण पे बात करने से पूर्व हमें, सशक्तिकरण का अर्थ समझना चाहिए।
‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस योग्यता से है जिसमे वो अपने जीवन से जुड़े सभी फैसले स्वयं ले सके।
हम/आप अक्सर महिलाओं के आजादी,उनके अधिकार,उनके शिक्षा को लेकर समाज व सोशल मीडिया पे विचार करते रहते हैं।
लेकिन ये सब मात्र ढोंग बनके रह गया है। वो इसलिए,क्योंकि
जब बात हमारी बहन,बेटियों या घर की महिलाओं पे आती है,तब हम सब सुस्त पड़ जाते हैं खाश तौर पे (अवध क्षेत्र में )
हमारा समाज उस अंधकार में है,जिसमे एक दीपक जलाने से रोशनी तो होती है,परन्तु हर कोनों तक बराबर उजाला नही पहुँचता ऐसे ही, हमारे समाज (अवध क्षेत्र) में 20% महिलाएं आगे आती तो हैं,और बड़ी लगन के साथ खुद को सशक्त भी करती हैं,चाहे वो शिक्षा के माध्यम से हो,रोजगार के माध्यम से हो,या कोई अन्य माध्यम हो।
तभी समाज का दूसरा हिस्सा जो दिखावे के लिए बहुत ही शिक्षित और सामाजिक होता है,वो समाज उन महिलाओं का चरित्र प्रमाणपत्र देने में तनिक भी संकोच नही करता,उन महिलाओं के जीवन और चरित्र को ऐसे शब्दों से बयां किया जाता है,जो मैं यंहा खुले तौर पे लिख भी नही सकता।
हमारे यंहा गर्न्थो में महिलाओं के लिए लिखा है यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है।
फिर महिलाएं इतना बेबस क्यों?
इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके सशक्तिकरण की अत्यंत आवश्यकता हो रही है,जिसका कारण सिर्फ और सिर्फ हमारा समाज है,और समाज बनाने में हमारा/आपका पूर्ण योगदान है,
हमे खुद को बदलने की आवश्यकता है,नारी सशक्त स्वयं हो जाएगी।

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