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कराची । पाकिस्तान की वित्तीय हालत काफी खस्ताहाल है। आलम यह है कि उसके खजाने में विदेशी पूंजी भंडार इतनी बची है कि महज दो महीनों के निर्यात के काम आ सकता है। इससे वहां भुगतान संकट की स्थिति पैदा हो सकती है। संभावना है कि इस समीक्षा में पाकिस्तान को काली सूची में डाल दिया जाएगा। इसके बाद वैश्विक वित्तीय प्रणाली तक पाकिस्तान की पहुंच कम हो जाएगी और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा उसे दिए जा रहे 6 अरब डॉलर के कार्यक्रम पर भी असर पड़ेगा। मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों के मुताबिक पाकिस्तान के समक्ष भुगतान का संकट मुंह बाए खड़ा है।

समाचार वेबसाइट द न्यूज डॉट कॉम ने कहा है कि पाकिस्तान अपनी खस्ताहाल वित्तीय हालत को देखते हुए चीन और दो अन्य विकाशसील देशों से मदद मिलने की आस लगाए है। पाकिस्तान को पेरिस स्थित अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पिछले साल ही आतंकवाद पर लगाम लगाने और उसका वित्त पोषण रोकने के उपाय करने को कहा था, जिसकी आखिरी समीक्षा इस साल अक्टूबर में होनी है।

एफएटीएफ के सदस्य देशों में भारत भी शामिल है और पाकिस्तान को अच्छी तरह पता है कि वैश्विक धन-शोधन और आतंकवाद रोधी वित्तपोषण के 27 मानकों की इस समीक्षा में अधिकतर मानकों पर वह असफल साबित होगा। खासतौर से भारत की हर कोशिश पाकिस्तान पर लगाम लगाने की होगी। ऐसे में पाकिस्तान को अपने पुराने दोस्त चीन का ही मुख्य रूप से सहारा है। इसके अलावा दो अन्य विकासशील देशों के साथ उसकी बातचीत चल रही है।

एफएटीएफ ने पाकिस्तान को पिछले साल निगरानी सूची (ग्रे) में डाला था। अमेरिकी और यूरोपीय देशों द्वारा आंतकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं और आतंकवाद को सहारा देने वाले देशों पर लगाम लगाई जा रही है। इसके तहत पाकिस्तान को भी 27 कदम उठाने की सूची दी गई है, जिसमें आतंकवाद के वित्त पोषण की पहचान कर उसे रोकने और अवैध मुद्रा पर काबू पाने को कहा गया है। अगर पाकिस्तान इसे पूरा करने में नाकाम रहता है तो उसे ईरान और उत्तर कोरिया की तरह ही ब्लैकलिस्ट कर दिया जाएगा।

जानकार सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तान इन मानकों के लक्ष्य का महज आधा ही प्राप्त कर पाया है, हालांकि वहां की सरकार उसे पूरा करने की कोशिश में जुटी है। लेकिन अक्टूबर तक सभी मानकों पर खरा उतरना पाकिस्तान के वश से बाहर की बात है। इसलिए पाकिस्तानी हुकूमत एफएटीएफ के अन्य सदस्य देशों चीन, मलेशिया और तुर्की का समर्थन जुटाने की कोशिश में है, ताकि उसे ब्लैकलिस्ट होने से बचाया जा सके। एफएटीएफ की कार्यप्रणाली की जानकारी रखने वाले एक सूत्र के मुताबिक, एफएटीएफ किसी देश को ब्लैकलिस्ट तभी करता है, जब उसके सदस्य देशों में इसे लेकर आम सहमति हो।

द न्यूज डॉट कॉम ने एफएटीएफ के एक प्रवक्ता के हवाले से कहा, “एफएटीएफ ने पाकिस्तान से कड़ाई से कहा कि वह अक्टूबर 2019 तक कार्य योजना का काम पूरा कर नहीं ले। नहीं तो अपर्याप्त प्रगति को लेकर एफएटीएफ के सदस्य अगले कदम का फैसला करेंगे।”

चीन, पाकिस्तान का एक प्रमुख सहयोगी है और वहां की अवसंरचना में भी चीन भारी निवेश कर रहा है। इसे देखते हुए संभावना है कि चीन, पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट होने से बचाने की पूरी कोशिश करेगा। फिलहाल एफएटीएफ के अध्यक्ष पद पर भी चीन के प्रतिनिधि शियांगमिन लियू काबिज हैं, ऐसे में संगठन पर चीन का प्रभाव फिलहाल बढ़ा हुआ है।

अगर चीन के साथ तुर्की और मलेशिया भी पाकिस्तान के बचाव में आ जाता है, तो उसे ब्लैकलिस्ट करना मुश्किल होगा। स्टेट बैंक पाकिस्तान के गर्वनर रेजा बाकीर ने संवाददाताओं से बात करते हुए संकेत दिया था कि पाकिस्तान इस स्थिति से बचने के लिए परदे के पीछे लॉबिंग कर रहा है। हालांकि उन्होंने कहा कि धनशोधन और आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाए जा रहे हैं और एफएटीए द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर काम किया जा रहा है।

चीन द्वारा अपने राष्ट्रीय हित में पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट होने से बचाने के लिए अन्य देशों से समर्थन जुटाने का भी प्रयास किया जा सकता है। एफएटीएफ के अध्यक्ष लियू पीपल्स बैंक ऑफ चायना के अधिकारी हैं और चीन के हितों को आगे बढ़ाने के लिए वे संगठन में अपने प्रभाव का पूरा इस्तेमाल करेंगे।

चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा था, “पाकिस्तान ने अपने आतंक के वित्त पोषण को रोकने में सकारात्मक उपलब्धियां हासिल की है। हमें उम्मीद है कि एफएटीएफ आतंकवाद के खिलाफ अपनी प्रभावी लड़ाई में पाकिस्तान को रचानत्मक समर्थन और सहायता प्रदान करते रहेगा।

वहीं, जून में पाकिस्तान की समीक्षा के बाद एफएटीएफ ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि वह जनवरी से मई के बीच की कार्ययोजना को दिए गए समय में पूरा करने में नाकाम रहा है। पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादियों या उनके सहयोगियों के रूप में नामित लगभग 1,300 लोगों पर प्रतिबंध लगाने के लिए बाध्य है।

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