देश में बीते 70 सालों से जम्मू-कश्मीर को लेकर जिसका इंतजार था, उसे अंतत: मोदी सरकार ने पूरा कर दिया। संघीय संविधान का अस्थायी अनुच्छेद 370 राष्ट्रपति ने समाप्त कर दिया और इसके साथ ही अनुच्छेद 35ए भी खत्म हो गया है। इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक 2019 के जरिए लद्दाख के लोगों की अरसे से लंबित मांग को स्वीकार करते हुए इसे केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया है। वैसे, जम्मू-कश्मीर भी केंद्र शासित राज्य होगा, लेकिन वहां लद्दाख के उलट विधानसभा होगी यानी यहां शासन व्यवस्था दिल्ली और पुदुचेरी की तरह होगी। राज्य के पुनर्गठन से इन दोनों इलाकों में अलगाव की भावना समाप्त होगी और जम्मू-कश्मीर में एकात्मकता की भावना भी आएगी। 370… कश्मीर पर मोदी के एक साथ 4 फैसलों से हर कोई हैरान
ऐसा नहीं है कि यह फैसला अचानक लिया गया है। सरकार पिछले कुछ समय से इसकी तैयारी कर रही थी। भारतीय जनता पार्टी, जनसंघ के समय से ही राष्ट्रविरोधी बताते हुए अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का अपना संकल्प दोहराती रही है। इसके अलावा सूबे के अंदर से ही लंबे अरसे से भाषायी व भौगोलिक आधार पर पुनर्गठन की मांग हो रही थी। लद्दाख ने तो 1947 में भी अपने आपको कश्मीर के साथ जोड़ने का विरोध किया था। देश का भाषायी आधार पर पुनर्गठन का निर्णय तो स्वयं नेहरू सरकार का था, लेकिन उनका पुनर्गठन का यह रथ पंजाब के दरवाज़े पर आकर रुक गया था। हालांकि, 1966 में केंद्र सरकार ने भाषा के आधार पर पंजाब का तो पुनर्गठन कर दिया, पर जम्मू-कश्मीर का मामला लटका पड़ा रहा। जम्मू संभाग की भाषा डोगरी, कश्मीर संभाग की कश्मीरी और लद्दाख संभाग की भोटी है। जिस प्रकार भाषा के आधार पर दक्षिण भारत, पश्चिमी भारत और पूर्वी भारत में रियासतों समेत भाषायी प्रांतों का गठन हुआ, उसी प्रकार जम्मू-कश्मीर में क्यों नहीं हुआ? अब यदि यह हो रहा है तो इसका स्वागत ही होगा।
झंडा, नागरिकता: कश्मीर में बदल गईं ये बातें
पिछले कई दशकों से यह राज्य विदेशी ताकतों से समर्थित आतंकवाद का शिकार है। उसके कारण राज्य के एक हिस्से कश्मीर घाटी से हिंदू और सिखों का सफ़ाया ही हो गया और उन्हें घाटी छोड़कर आना पड़ा। पिछली सरकारों की ढुलमुल और तुष्टीकरण की नीति के कारण राज्य के राजनीतिक दलों और नौकरशाही में भी आतंकवादियों के समर्थक समूह स्थापित हो गए। आतंकवादियों, घाटी के पारिवारिक राजनीतिक दलों, मुट्ठी भर व्यापारियों और नौकरशाही के गुटों का आपस में इतना ज़बरदस्त तालमेल बैठा कि राज्य का सारा पैसा इन्हीं के पेटों में समाने लगा। आम कश्मीरी, लद्दाखी और जम्मूवासी इनकी ‘रिश्वत नीति’ में पिसता रहा है। जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश ने यहां तक निर्णय दे दिया था कि यह राज्य प्रभुसत्ता सम्पन्न स्टेट के समकक्ष ही है। प्रदेश के भीतर अपने समर्थकों का एक सुदृढ़ समूह स्थापित कर लेने के बाद पाकिस्तान पिछले कई दशकों से घुसपैठ के माध्यम से निरंतर अपने आतंकवादी भेजता रहा है। हाल ही में केरन सेक्टर में घुसपैठ करने का प्रयास करते हुए पाकिस्तान के सात कमांडो मारे गए हैं। इससे पाकिस्तान की छटपटाहट का अनुमान लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद 370 समस्या था की जड़
असली प्रश्न तो यह है कि आज प्रदेश इस दलदल तक कैसे पहुँचा? इसका एक मुख्य कारण प्रदेश में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए का लागू होना था। अनुच्छेद 370 उस समय के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आपसी संबंधों और राजनीति में से उपजा था, लेकिन इसके बावजूद इसे संविधान का अस्थायी और कम आयु का अनुच्छेद माना गया था। यह अनुच्छेद संघीय संविधान के कई अनुच्छेदों को प्रदेश में लागू होने से रोकता था। नतीजन, महरूम शेख अब्दुल्ला के परिवार ने और उनकी ‘फैमली पार्टी’ नैशनल कान्फ्रेंस दल ने वहां की सत्ता पर कब्जा कर लिया और प्रदेश उनकी जागीर बन कर रह गया है। कालांतर में सैयदों के एक दूसरे दल पीडीपी ने भी इसमें अपनी हिस्सेदारी मांगनी शुरु कर दी और उसने भी घाटी में अपने लिए स्पेस बना ली।
370 की छाया में चल रही लूट थमेगी
नैशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी को अनुच्छेद 370 चाहिए क्योंकि उसमें सुरक्षित रह कर लूट की जा सकती है और किसी किस्म की जवाबदेही नहीं होती। जब कश्मीर की जनता इन दोनों पारिवारिक दलों की इजारेदारी से तंग आ गई तो इन दोनों दलों ने अलगाववादी गुटॉ से प्रत्यक्ष या परोक्ष सांठगांठ करके पूरे कश्मीर को ही बंधक बना लिया और बिना मतदान के जीतने की शुद्ध कश्मीरी कला विकसित कर ली। इनकी सांठगांठ का ही परिणाम है कि चुनाव में मतदान का बहिष्कार हो जाता है और ये दल मज़े से जीत जाते हैं। उसके बाद ये प्रदेश की जनता या आम कश्मीरियों की आवाज़ नहीं उठाते बल्कि अलगाववादी गुटों द्वारा निर्देशित भाषा बोलते हैं। ये जानते हैं कि यदि अनुच्छेद 370 का तम्बू उखड़ गया तो ये सभी प्रदेश की राजनीति में अप्रासंगिक हो जाएंगे। फिर शेखों और सैयदों के बच्चे ही सत्ता पर क़ाबिज़ नहीं होंगे बल्कि आम कश्मीरी जनता भी उसकी हिस्सेदार हो जाएगी।
सत्ता छिनने का डर?
अनुच्छेद 370 इनको संरक्षण प्रदान करता है । इनके लिए यह अनुच्छेद सत्ता तक पहुंचने का बाइपास है, जिससे केवल कश्मीरियों को ही नहीं लद्दाख और जम्मू के लोगों को भी नुक़सान हो रहा है। वहाँ की विधान सभा में जनजातियों के लिए उनकी जनसंख्या के अनुपात से सीटें नहीं दी जातीं। विधान सभा में एसटी के लिए एक सीट भी आरक्षित नहीं है, जबकि जम्मू-कश्मीर का अपना संविधान ही प्रदेश की बारह जातियों को जनजातियां मानता है। अब्दुल्ला और महबूबा जानते हैं कि यदि यह प्रावधान लागू हो गया तो प्रदेश की सत्ता इनके हाथों से त्छिन जाएगी। इनके लिए 370 का अर्थ केवल इतना ही है कि अधिकार कहीं प्रदेश की आम जनता के पास न चले जाए। यही इनकी दृष्टि में राज्य का स्पेशल दर्जा है। इसे भी 370 का ही प्रताप मानना चाहिए कि प्रदेश विधान सभा में सबसे छोटे संभाग कश्मीर घाटी के लिए 46 सीटें हैं और जम्मू संभाग के लिए केवल 37 सीटें हैं जबकि जनसंख्या लगभग दोनों की समान ही है। इसी अनुच्छेद ने लद्दाख की हालत, जो प्रदेश का सबसे बड़ा हिस्सा है, अनाथ जैसी बना रखी है । बजट का बड़ा हिस्सा घाटी में खप जाता है और लद्दाख के हिस्से केवल खुरचनें आती हैं।
अन्य रियासतों की तरह ही शामिल हुआ था जम्मू-कश्मीर
महाराजा हरि सिंह ने तो जम्मू-कश्मीर को भी उसी तरह भारत की नई संघीय व्यवस्था का हिस्सा बनाया था, जिस प्रकार देश की दूसरी रियासतों के महाराणाओं ने अपनी रियासतों को बनाया था। जहाँ तक केवल तीन विषय के मामले में ही संघीय संविधान के न लागू होने की बात है, शेष रियासतों के शासकों ने भी वही किया था क्योंकि यह व्यवस्था उस समय की नेहरू सरकार ने स्वयं की थी। बाद में शासकों ने पूरे संविधान को लागू किए जाने को स्वीकार किया, लेकिन जम्मू-कश्मीर के मामले में नेहरू सरकार ने महाराजा हरि सिंह से संवाद बनाए रखने के बजाए शेख़ अब्दुल्ला के साथ मिल कर हरि सिंह को निर्वासित करने में पूरा ज़ोर लगा दिया और उसमें सफलता हासिल की। यह नेहरू और शेख़ अब्दुल्ला की जोड़ी थी जिन्होंने राज्य के अधिकांश लोगों की इच्छा के विपरीत अपवित्र अनुच्छेद 370 को जन्म दिया था।
टेस्ट ट्यूब बेबी था आर्टिकल 35ए
प्रदेश के तथाकथित विशेष दर्जा का शिकंजा और भी मज़बूती से कसने के लिए ही अनुच्छेद 35 ए के रूप में ‘टेस्ट ट्यूब’ बेबी ने जन्म लिया। अनुच्छेद 370 राज्य सरकार को यह अधिकार तो देता है कि वह राष्ट्रपति की अधिसूचना के माध्यम से ही संघीय संविधान के किसी अनुच्छेद को उसके मूल रूप में या संशोधित रूप में लागू करवा सकती है, लेकिन 1954 में जम्मू कश्मीर की सरकार की प्रार्थना पर 35 ए के नाम से एक नया अनुच्छेद ही जोड़ दिया गया। यह नया अनुच्छेद राज्य सरकार को अधिकार देता है कि वह स्थायी निवासी की आड़ में देश के नागरिकों के साथ भेदभाव करती है तो उसे कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती। इस अनुच्छेद को हटाने की मांग भी लम्बे अरसे से हो रही थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू, माउंटबेटन और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की रणनीति से जम्मू-कश्मीर में 1947 में ही विवाद पैदा हो गया था। नेहरू ने इसे संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाकर इसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप दे दिया था, जिस विरासत को सभी सरकारें आज तक ढोती रही हैं।
जम्मू-कश्मीर में क्या बदलेगा?
अनुच्छेद 370 के खत्म होने के साथ अनुच्छेद 35ए भी खत्म हो गया है, जिससे राज्य के स्थायी निवासी की पहचान होती थी। राज्यसभा में सरकार का संकल्प पेश करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि अनुच्छेद 370 का केवल खंड एक बरकरार रखा गया है, जिसके तहत राष्ट्रपति वहां किसी बदलाव का आदेश जारी कर सकते हैं। अब जम्मू-कश्मीर विधान सभा में भी संघीय संविधान के अनुच्छेदों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण किया जाएगा, जिससे विधान सभा सचमुच प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर सकेगी।
अब क्या करेगा पाकिस्तान?
उम्मीद के मुताबिक ही पाकिस्तान ने छाती पीटना शुरू कर दिया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह मोहम्मद क़ुरैशी ने कहा कि अनुच्छेद 370 खत्म करके भारत ने बहुत खतरनाक खेल खेला है और इसका असर बहुत भयानक होगा। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि भारत ने अपने फैसले से मामले को और जटिल बना दिया है। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों को पहले से ज़्यादा कैद कर दिया गया है। इमरान इस मामले में संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक देशों का दरवाजा खटखटाने की बात कर रहे हैं, लेकिन वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता नहीं कि इसमें उन्हें कोई खास सफलता मिलेगी। अब कुल मिलाकर कश्मीर समस्या के नाम पर यही बचा है कि पाकिस्तान द्वारा क़ब्ज़ाया इलाक़ा कैसे खाली करवाया जाए। इस विषय पर पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। आश्चर्य की बात है कि कांग्रेस ने इसका विरोध किया, जबकि जवाहर लाल नेहरू ने स्वयं ही लोकसभा में कहा था कि समय पाकर यह अनुच्छेद हटा दिया जाएगा । लगता है सोनिया जी के नेतृत्व में कांग्रेस देश की मुख्य धारा से कट गई है।