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नई दिल्ली । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बृहस्पतिवार को लोकसभा में दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता संशोधन विधेयक, 2019 को चर्चा और पारित करने के लिए पेश करते हुए कहा कि इसका मुख्य उद्देश्य समयबद्ध तरीके से ऋण से जुड़े मुद्दों का निपटारा करना एवं समाधान निकालना है। सीतारमण ने कहा कि जब तक 2016 में मूल संहिता (आईबीसी) देश में नहीं लायी गयी थी, देश में ऋणशोधन अक्षमता ढांचा अच्छी स्थिति में नहीं था तथा विधेयक का मकसद हासिल नहीं हो पा रहा था और इसके पर्याप्त नतीजे नहीं मिल रहे थे। उन्होंने कहा कि हमने महसूस किया कि कुछ मामलों में स्पष्टता के अभाव में अदालतों और राष्ट्रीय कंपनी विधि अधिकरण :एनसीएलटी: द्वारा दी गई व्याख्या से कई महत्वपूर्ण सवाल पैदा हुए हैं और इस संबंध में स्पष्टता की जरूरत है।सीतारमण ने कहा कि इस संबंध में संहिता में लाये गये संशोधनों का मुख्य उद्देश्य समयबद्ध तरीके से ऋणशोधन अक्षमता के समाधान निकालना और अधिक से अधिक मूल्य हासिल करना है।उन्होंने कहा कि अंशधारकों के हितों के बीच संतुलन कायम करना एक मुद्दा बनता जा रहा है और इसी कारण से इन संशोधनों को लाया गया है। विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि इस संबंध में सबसे पहले 2016 में संहिता लाई गयी थी जो पिछली सरकार के सबसे सकारात्मक कदमों में से एक था। उन्होंने कहा कि देश में अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है और पिछली तिमाही भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं रही। गोगोई ने कहा कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी पर काम का अत्यधिक बोझ है, इसमें संदेह नहीं है।

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