देश के स्वतंत्रता दिवस में अभी दो सप्ताह शेष हैं। मुसलमानों के प्रमुख त्योहार बकरीद में भी 11 दिन बाकी हैं, लेकिन करीब नौ करोड़ मुस्लिम महिलाओं और उनके समर्थकों के लिए आज ही 15 अगस्त और ईद है। यह बधाइयों का मुबारक दिन है। ये ऐतिहासिक लम्हे हैं, जिन्हें इस देश ने देखा होगा। यह मोदी सरकार और मुस्लिम औरतों की बड़ी कामयाबी का दिन है। यह मुस्लिम औरत के साथ भद्दा मजाक, खिलवाड़, उत्पीड़न खत्म करने की शुरुआत है। यह मुस्लिम महिलाओं की वैवाहिक गरिमा, लैंगिक आजादी और सशक्तिकरण पर मुहर लगाने का दिन है और सबसे बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी के मुताबिक एक मध्ययुगीन कुप्रथा को इतिहास के कूड़ेदान में फेंकने का दिन है। लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक का बिल 99-84 वोटों से पारित हुआ है। राज्यसभा में मोदी सरकार, भाजपा-एनडीए अब भी अल्पमत में हैं, लेकिन भारत और मुस्लिम समाज को तीन तलाक से मुक्त करने के मद्देनजर यह बिल संसद के दोनों सदनों से पारित होना अनिवार्य था। अब यह पारित बिल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास जाएगा। उनके हस्ताक्षर के साथ ही तीन तलाक भारत में भी प्रतिबंधित हो जाएगा और कानूनन अपराध बन जाएगा। अब फोन पर, चिट्ठी और व्हाट्सऐप के जरिए, बेटियां पैदा होने पर, रोटी जलने और सब्जी में नमक ज्यादा होने सरीखे आधारों पर ही मुस्लिम पत्नी को एक बार में ही तीन तलाक देना संभव नहीं होगा। यह आपराधिक होगा और मुस्लिम मर्द को तीन साल जेल की सजा हो सकती है। यह न तो लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है, न साम-दाम-दंड-भेद और न ही मुस्लिम परिवारों की तबाही की संवैधानिक शुरुआत है। यह सालों से संघर्ष कर रही, आंदोलनरत और तलाकशुदा मुस्लिम औरतों की बहुत बड़ी लोकतांत्रिक जीत है। प्रधानमंत्री मोदी ने लाल किले से देश के साथ किया वादा भी निभाया और साबित कर दिया कि मोदी है, तो कुछ भी मुमकिन है। संसद के जरिए यह बिल पारित कराना और फिर कानून की शक्ल देना बेहद जरूरी था, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को ‘अवैध’ करार देना ही पर्याप्त नहीं था। जनवरी 2017 से जुलाई 2019 तक तीन तलाक के 574 केस हुए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद तीन तलाक के 345 मामले सामने आए। अध्यादेश के बावजूद 100 से ज्यादा तलाक-ए-बिद्दत दिए गए। साफ था कि तलाक देने वाले मर्दों को किसी भी तरह की सजा का खौफ नहीं था। अब यह व्यवस्था मुस्लिम औरतों के लिए एक ‘सशक्त हथियार’ साबित होगी। मुस्लिम औरतों द्वारा लड्डू खाने और नाचने से साफ है कि वे जश्न की मुद्रा में हैं, लिहाजा यह दुष्प्रचार ही है कि एक करोड़ मुस्लिम महिलाओं ने इस बिल का विरोध किया था। अलबत्ता यह बिल पारित होने और कानून का रूप लेने से ही दावा नहीं किया जा सकता कि भारत और मुस्लिम समाज तीन तलाक मुक्त हो जाएंगे। कई कुरीतियों और अपराधों के खिलाफ कानून बनाए गए हैं, लेकिन वे अब भी मौजूद हैं। हालांकि उनकी सजा भी मौजूद है। उम्र कैद और फांसी तक की सजा के प्रावधान हैं। बहरहाल मोदी सरकार ने एक बड़े सामाजिक बदलाव का आगाज किया है, लेकिन इसमें राजनीति भी निहित है। राज्यसभा में विपक्ष का बिखराव देखा गया, नतीजतन यह बिल भी पारित हो सका। विपक्ष के कुल 23 सांसद मतदान के दौरान सदन में नहीं थे। कांग्रेस-4, सपा-6, बसपा-4, एनसीपी-2, टीडीपी-2, पीडीपी-2, द्रमुक, सीपीएम और तृणमूल के 1-1 सांसद भी गैरहाजिर थे। जनता दल-यू, अन्नाद्रमुक और टीआरएस के भी 23 सांसदों ने या तो वाकआउट किया या वोटिंग के समय नहीं रहे। राज्यसभा के 240 सांसदों में से 184 ने ही वोट दिए। इस तरह उच्च सदन में विपक्ष न तो समविचारक बन पाया और न ही महागठबंधन की ताकत दिखा पाया। राजनीति यह भी है कि इस बिल को कानून तक पहुंचा कर भाजपा के लिए एक नया वोटबैंक तैयार किया गया है। अब मुसलमानों का प्रगतिशील तबका भाजपा के पाले में आकर उसे वोट कर सकता है। विपक्ष आग्रह कर रहा था कि इस बिल पर पर्याप्त विमर्श के लिए संसदीय स्थायी समिति या प्रवर समिति को भेजा जाए। राज्यसभा में ऐसे तमाम संशोधन और आग्रह भी ध्वस्त हो गए। बहरहाल तीन तलाक पर कानून बनने की शुरुआत हुई है, लिहाजा अब बहस बंद होनी चाहिए, क्योंकि संसद ने बहस का ही मौका दिया था। यदि भविष्य में विसंगतियां सामने आती हैं, तो संसद में उन्हें जरूर उठाया जाना चाहिए।