rupee

भारतीय मुद्रा मंगलवार को डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक गिरावट के साथ 70 रुपये पार पहुंच गई। भारतीय मुद्रा उतार-चढ़ाव के बाद मंगलवार सुबह रुपया 70.08 पर पहुंच गया, जो अब तक का सबसे निम्नतम स्तर है।

इससे पहले सोमवार को विदेशी निवेशकों में अस्थिरता के माहौल के कारण अंतर बैंकिंग विनिमय बाजार में रुपया 1.08 पैसे टूटकर यानी करीब 1.57% लुढ़का और यह तीन सितंबर 2013 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है। रुपया सोमवार को 69.49 रुपये पर खुला था।जबकि शुक्रवार को यह 68.84 पर बंद हुआ था। विश्लेषकों का कहना है कि व्यापार युद्ध के बाद अमेरिका और तुर्की के बीच राजनीतिक टकराव का सीधा असर उभरती देशों की अर्थव्यवस्था की मुद्रा पर पड़ा है।

टकराव बढ़ने की आशंका के बाद विदेशी निवेशकों ने उभरते देशों से निकासी की, जिससे डॉलर मजबूत हुआ और रुपया समेत एशियाई देशों की मुद्राएं लुढ़क गईं। भारतीय मुद्रा शुरुआती कारोबार में 79 पैसे गिरकर 69.62 रुपये तक आ गई थी। लेकिन आरबीआई के हस्तक्षेप के बाद इसमें सुधार आया और दोपहर को यह 69.34 रुपये तक सुधरी, लेकिन शाम होते-होते यह फिर बड़ी गिरावट के साथ 70 रुपये से महज नौ पैसे ऊपर बंद हुआ। रुपये में 8.67 %इस साल करीब नौ फीसदी की गिरावट रही है, क्योंकि विदेशी निवेशकों ने इक्विटी और डेट बाजार से क्रमश: 26.4 करोड़ डॉलर और 5.43 अरब डॉलर निकाले हैं।

रुपये में गिरावट से सहमा बाजार, सेंसेक्स 224 अंक टूटा
तुर्की की मुद्रा की कीमत करीब आधी रह गई
तुर्की में अमेरिका के एक पादरी को सजा के बाद दोनों देशों में टकराव गहराए। इसके बाद अमेरिका ने उसके उत्पादों पर 20 फीसदी आयात शुल्क लगा दिया। इससे तुर्की की मुद्रा लीरा का इस साल 45 फीसदी अवमूल्यन हो चुका है और यह 17 सालों के निम्नतम स्तर पर है। तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यप इर्दोगान के अमेरिका के आगे न झुकने से बाजार में अस्थिरता और बढ़ गई है। सोमवार को लीरा में 11 फीसदी गिरावट आई, जिससे दुनियाभर के बाजारों में खलबली मच गई। श्रीलंका का रुपया 4 और पाकिस्तानी रुपया

भारत में लंबे समय तक असर नहीं पड़ेगा
ब्लूमबर्ग इकोनॉमिक्स के अर्थशास्त्री अभिषेक गुप्ता का कहना है कि तुर्की के संकट का भारत पर असर लंबे समय तक नहीं रहेगा। भारत 2013 के मुकाबले इस वक्त किसी वैश्विक झटके से निपटने में ज्यादा सक्षम है। विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति भी मजबूत बनी हुई है। अभिषेक ने कहा कि भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था के मानक मजबूत और सकारात्मक बने हुए हैं, ऐसे में घबराहट की जरूरत नहीं है। डीबीएस बैंक की अर्थशास्त्री राधिका राव का कहना है कि आरबीआई ऐसी स्थिति देखते हुए बफर स्टॉक की तैयारी कर रहा है, ताकि पूंजी प्रवाह में कमी न हो।

जनधन खाताधारकों को मिलेंगे कई तोहफे, 15 अगस्त को PM मोदी कर सकते हैं एलान

उभरते देशों की मुद्राओं में हाहाकार
व्यापार युद्ध और अस्थिरता के माहौल से उभरते देशों की मुद्रा में हाहाकार की स्थिति है। तुर्की की लीरा 17 साल के और रूसी मुद्रा रूबल और ब्राजील की मुद्रा रियाल दो साल के निचले स्तर पर है। चीनी मुद्रा युआन लगातार नौ हफ्तों से लुढ़क रही है। मलेशिया की रिंगित, मैक्सिको की पेसो, द. अफ्रीका की रैंड, अर्जेन्टीना की पेसो में भी इस साल चार से नौ फीसदी की गिरावट झेल चुकी हैं।

रुपये से आपकी जेब भी होगी हल्की :-
– आयातित उत्पाद और कलपुर्जे महंगे होंगे
– कच्चे तेल के दाम बढ़ने से पेट्रोल-डीजल बढ़ेगा
– महंगाई बढ़ेगी तो आरबीआई ब्याज दर और बढ़ाएगा
– निर्यात करने वाले उद्योग जैसे आईटी फार्मा को फायदा
– आयात करने वाले उद्योगों जैसे मशीनरी, टेक्सटाइल को घाटा
– आयात से जुड़े छोटे उद्योगों को बोझ सहन करना मुश्किल

इसलिए सहमी उभरते देशों की मुद्राएं
– अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद तुर्की की मुद्रा लीरा में भारी गिरावट
– आयातकों एवं बैंकों की ओर से डॉलर की मांग तेजी से बढ़ी
– भारत जैसे उभरते देशों से विदेशी निवेशकों ने पूंजी निकाली
– व्यापार युद्ध के जल्द ही करेंसी वॉर में तब्दील होने की आशंका
– अमेरिका से छेड़े गए व्यापार युद्ध ने तमाम देश निशाने पर

रुपये पर मौजूदा दबाव उभरते देशों के बाजार में मंडरा रहे अस्थिरता का परिणाम है। निवेशकों द्वारा उभरते बाजारों से पूंजी निकालने की बेचैनी से यह संकट गहराया है। -सौम्यजीत नियोगी, इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के सहायक निदेशक

जल्द बंद हो जाएंगे करोड़ों एसबीआई एटीएम कार्ड, जानें वजह

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *