इस समय देश में आर्थिक सुस्ती का चिंताजनक परिदृश्य दिखाई दे रहा है। हाल ही में एक अगस्त को ख्याति प्राप्त रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए आर्थिक विकास दर का अनुमान 7.2 फीसदी से घटाकर सात फीसदी कर दिया है। विकास दर में कमी के लिए क्रिसिल ने मानसून के पर्याप्त नहीं होने और वैश्विक मंदी को प्रमुख कारण बताया है। इसी तरह पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान घटाकर सात फीसदी कर दिया है। बैंक ऑफ अमरीका मेरिल लिंच, कोटक महिंद्रा बैंक जैसे वित्तीय संस्थानों की शोध एजेंसियों ने भी पिछले दिनों भारत की आर्थिक विकास दर में कमी आने का आकलन किया है। इसी तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी वृद्धि दर अनुमान घटाकर सात फीसदी कर दिया है।

यह भी उल्लेखनीय है कि देश के शेयर बाजार में भी गिरावट का दौर है। इतना ही नहीं वित्त मंत्रालय के अनुसार चालू वित्त वर्ष 2019-20 के जुलाई माह में जीएसटी संग्रह में मात्र 5.8 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो लक्षित अनुमान से बहुत कम है। इस तरह विकास दर घटने के विभिन्न अनुमानों पर चिंताएं इसलिए भी जरूरी हैं, क्योंकि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई मुश्किलें दिखाई दे रही हैं। मैन्युफेक्चरिंग सेक्टर में चार वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी के हालात हैं। बाजार में सुस्ती छाई हुई है। निश्चित रूप से वर्ष 2018 से भारतीय अर्थव्यवस्था को जो आर्थिक सुस्ती की विरासत मिली है, वह सुस्ती अभी कम नहीं हुई है। वर्ष 2018 में देश के आर्थिक परिदृश्य पर तेजी से बढ़ती हुई चार अहम आर्थिक चुनौतियां संपूर्ण अर्थव्यवस्था को चिंतित करते हुए दिखाई दीं। एक, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें आर्थिक संकट को बढ़ाते हुए दिखाई दीं। दो, डालर की तुलना में रुपए की कीमत में करीब 20 फीसदी की वृद्धि हुई। रुपए की तुलना में अमरीकी डालर का मूल्य 70 रुपए पर पहुंच गया। परिणामस्वरूप रुपए की घटती हुई कीमत और महंगाई बढ़ने से अर्थव्यवस्था की परेशानियां बढ़ीं। तीन, देश का राजकोषीय घाटा तेजी से बढ़ा और चार, आयात बढ़ने और निर्यात पर्याप्त नहीं बढ़ने से विदेशी मुद्रा कोष में कमी आई। गौरतलब है कि जीएसटी संबंधी मुश्किलों के कारण भी भारतीय अर्थव्यवस्था की मुश्किलें बढ़ी हैं। हाल ही में 30 जुलाई को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने संसद में 2017-18 के लिए वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) पर पेश अपनी रिपोर्ट में कहा कि जीएसटी संबंधी खामियों के कारण पहले साल के दौरान जीएसटी कर संग्रह सुस्त रहा। इस रिपोर्ट में कहा गया कि जीएसटी लागू होने के बाद इससे केंद्र के राजस्व (पेट्रोलियम और तंबाकू पर केंद्रीय उत्पाद कर छोड़कर) में 2017-18 के दौरान वित्त वर्ष 2016-17 की तुलना में दस प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई। सीएजी ने रिपोर्ट में राजस्व विभाग, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) और जीएसटी नेटवर्क की असफलताएं रेखांकित की। रिपोर्ट में कहा गया कि रिटर्न व्यवस्था और तकनीकी व्यवधान की जटिलता की वजह से बिल मिलान, रिफंड के ऑटोजेनरेशन तथा जीएसटी कर अनुपालन व्यवस्था संबंधी भारी कमियां सामने आई हैं। सचमुच इस समय आर्थिक सुस्ती के बीच सरकार के सामने सबसे पहली चुनौती अर्थव्यवस्था को तेजी देने की है। इसलिए मोदी सरकार को आर्थिक वृद्धि को पटरी पर लाने के लिए नई रणनीति बनानी होगी। नई रणनीति के तहत आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाना होगा। वैश्विक कारोबार में वृद्धि करनी होगी। टैक्स के प्रति मित्रवत कानून को नई राह देनी होगी। जीएसटी को सरल तथा प्रभावी बनाना होगा। श्रम सुधारों को लागू करना होगा। ज्यादा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की आवक सुनिश्चित करनी होगी। निर्यात में सुधार और विनिर्माण को आगे बढ़ाने की रणनीति बनानी होगी। डिजिटलीकरण जैसे नीतिगत प्रयासों को तेजी से आगे बढ़ाना होगा। ग्रामीण विकास, सड़क निर्माण, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गतिशील करना होगा। इसके लिए मोदी सरकार को अधिक संसाधन भी जुटाने होंगे। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए वर्ष 2019-20 के बजट में एक लाख करोड़ रुपए के विनिवेश का जो लक्ष्य रखा गया है, उसको पाने के लिए भरपूर प्रयास करना होगा।

निश्चित रूप से उद्योग-कारोबार को गतिशील करने के लिए मोदी सरकार को उपभोग और क्रय शक्ति बढ़ाने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा। बाजार और अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक और वित्तीय नीतियों में निरंतरता जरूरी होगी। ऐसे में ऋण बाजार के दबाव को दूर करना मोदी सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के एजेंडे में शामिल किया जाना होगा। आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में और कटौती करने तथा अर्थव्यवस्था में  अधिक नकदी का प्रवाह बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि इससे आर्थिक चक्र को पटरी पर लाया जा सकेगा। वैश्विक सुस्ती के बीच रोजगार बढ़ाना सरकार की एक बड़ी चुनौती है। निश्चित रूप से वैश्विक सुस्ती और निर्यात की चुनौतियों के बीच निर्यात मौकों को मुट्ठियों में लेने के लिए हमें रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा। देश में निर्यातकों को सस्ती दरों पर और समय पर कर्ज दिलाने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी। चूंकि पिछले कुछ सालों में निर्यात कर्ज का हिस्सा कम हुआ है।

ऐसे में किफायती दरों पर कर्ज सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। सरकार द्वारा अन्य देशों की गैर शुल्कीय बाधाएं, मुद्रा का उतार-चढ़ाव, सीमा शुल्क अधिकारियों से निपटने में मुश्किल और सेवा कर जैसे निर्यात को प्रभावित करने वाले कई मुद्दों से निपटने की रणनीतिक आवश्यकता है। कर प्रक्रियाओं को सहज बनाना आवश्यक है। निर्यातकों को टैक्स क्रेडिट मुहैया कराने के पहले अत्यधिक जांच-परख से बचाना होगा। निर्यातकों को जीएसटी के तहत रिफंड संबंधी कठिनाइयों को दूर करना होगा, निर्यातकों के लिए ब्याज सबसिडी बहाल की जानी होगी। हम आशा करें कि मोदी सरकार आर्थिक सुस्ती से गुजर रहे वर्ष 2019 को विकास की डगर पर तेजी से आगे बढ़ाने के लिए नए रणनीतिक कदमों के साथ आगे आएगी। ऐसा होने पर ही भारत 2025 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के सपने को साकार कर पाएगा।

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