amar singh

अपने विवादित बयानों, शेरो-शायरी, फ़िल्मी गानों के मुखड़ों के द्वारा तथा व व्यंगात्मक लहजे में अपनी बात कहने वाले नेता अमर सिंह अपनी इन्हीं “विशेषताओं” के चलते अक्सर अख़बारों की सुर्ख़ियां में बने रहते हैं। उनकी शोहरत की एक वजह यह भी है कि वे देश के ऐसे नेता हैं जो फ़िल्मी सितारों तथा उद्योग जगत की कई महान हस्तियों के साथ अपने प्रगाढ़ व्यक्तिगत संबंधों के लिए भी जाने जाते हैं। ख़ास तौर पर उनको सबसे अधिक शोहरत उन दिनों मिली जबकि वे अमिताभ बच्चन के पारिवारिक सदस्य के रूप में कई वर्षों तक ख़बरों में सुर्ख़ियां बटोरते रहे। उन्हें बड़े ही अपनत्व के भाव के साथ बच्चन परिवार के सभी सदस्यों के साथ कभी सामूहिक रूप से तो कभी अलग अलग सदस्यों के साथ भी देखा जाता रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि उनकी इसी “अति विशेष मित्र मण्डली” ने उन्हें मीडिया का भी चहेता बना दिया। बच्चन व अंबानी जैसे हाई प्रोफ़ाइल लोगों की संगत की वजह से ही वे मुलायम सिंह यादव के भी कभी इतने क़रीब हो गए कि समाजवादी पार्टी में नंबर 2 की हैसियत तक जा पहुंचे। परन्तु उनके बड़बोलेपन ने जिसे शायद वे अपनी स्पष्टवादिता समझते हैं, ने उन्हें कहीं का न छोड़ा। न ही वे बच्चन परिवार के लम्बे समय तक क़रीबी बने रह सके न ही मुलायम सिंह यादव के साथ बने रह सके। अमर सिंह को मीडिया में बने रहने का ख़ास तौर से टी वी चैनल्स को इंटरव्यू देने का बहुत शौक़ है। उनके अधिकतर ताज़ातरीन साक्षात्कार या तो बच्चन परिवार पर आक्रमण करने वाले होते हैं या मुलायम सिंह यादव, अखिलेश अथवा आज़म ख़ां को निशाना बनाने वाले होते हैं। जया प्रदा को भाजपा में शामिल कराने से लेकर उनको रामपुर से भाजपा का उम्मीदवार बनाने तक में अमर सिंह की ही महत्वपूर्ण भूमिका बताई जाती है। वे उनके चुनाव में भी अहम् किरदार अदा कर रहे थे।

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद अमिताभ बच्चन जोकि गांधी नेहरू परिवार से व्यक्तिगत पारिवारिक संबंध रखते थे, ने अपने जीवन का एक एक सबसे बड़ा और भावनात्मक निर्णय यह लिया कि अपने फ़िल्मी कैरियर की परवाह किये बिना उन्होंने राजनीति में आने का निर्णय लिया। कांग्रेस पार्टी में शामिल होने और इलाहबाद से संसदीय चुनाव लड़ने का कारण अमिताभ बच्चन यह बताते थे कि वे अपने मित्र राजीव गांधी की सहायता करने व उनके हाथों को मज़बूत करने की ग़रज़ से राजनीति में आए हैं। बहरहाल संक्षेप यह कि अपनी राजनैतिक पारी के मात्र ढाई वर्षों में ही उन्हें इस बात का एहसास हो गया कि वे इस “पेशे” के योग्य नहीं हैं। और अनेक प्रकार के झूठे लांछनों से दुखी होकर वे राजनीति से लेकर लोकसभा की सदस्य्ता तक सब कुछ त्याग कर पुनः माया नगरी मुंबई में वापस लौट गए। मुंबई फ़िल्म नगरी में पुनः वापसी के बाद अमिताभ ने 1995 में अपनी ए बी सी एल नमक मनोरंजन की एक व्यवसायिक कंपनी का गठन किया। इसके अंतर्गत उन्होंने कई फ़िल्में बनाईं व टी वी सीरियल भी बनाया। और इसी कम्पनी के बैनर तले उन्होंने भारत में पहली बार मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता के आयोजन की घोषणा भी कर दी। परन्तु चूँकि वे कांग्रेस पार्टी व राजीव गांधी के हितैषी होने की मुहर स्वयं पर लगवा चुके थे इसलिए उनके इस आयोजन को “भारतीय संस्कृति” के तथाकथित रखवालों का इतना बड़े स्तर पर विरोध सहना पड़ा कि यह आयोजन पूरी तरह से फ़ेल हो गया। इसके बाद अमिताभ बच्चन भारी आर्थिक नुक़्सान की चपेट में आ गए।

इसी घटना के बाद अमिताभ के जीवन में अमर सिंह का प्रवेश हुआ। उन्होंने उनकी हर संभव आर्थिक सहयता की तथा सहारा ग्रुप के सुब्रत रॉय के निदेशक मंडल में उन्हें शामिल कराया। इसी के बाद अमिताभ की आर्थिक स्थिति में धीरे धीरे सुधार हुआ। इसके कुछ समय बाद ही सोनी द्वारा कौन बनेगा करोड़पति शुरू हुआ इसके बाद तो अमिताभ ने पीछे मुड़कर ही नहीं देखा। ज़रूरत से ज़्यादा बोलना और बड़बोलापन यह दोनों ही अमर सिंह की जीवन शैली का एक ख़ास हिस्सा हैं। सही मायने में उनकी पहचान ही इसी वजह से बनी है। ज़ाहिर है अमिताभ जैसे सौम्य व गंभीर व्यक्ति के साथ उनकी राशी लंबे समय तक नहीं मिल सकी। संबंध कमज़ोर होने के बाद अमर सिंह ने अमिताभ के पूरे परिवार पर अपना एहसान जताना नहीं छोड़ा। वे बार बार इसका ज़िक्र मीडिया से करते। वे उनकी आलोचना करते समय यह भी भूल जाते की अमिताभ भारतीय सिनेमा का अब तक का अकेला मिलेनियम स्टार है। केवल यू पी और वह भी पूर्वांचल की अंशकालिक राजनीति करने वाले अमर सिंह को शायद इस बात का भी अंदाज़ा नहीं की बच्चन परिवार भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के अनेक देशों में लोकप्रिय है। उनका वश नहीं चलता वरना सात हिंदुस्तानी में उनकी फ़िल्मी यात्रा की शुरुआत से लेकर ज़ंजीर, दीवार और शोले जैसी अनेक सफल फ़िल्मों में अमिताभ के शानदार अभिनय का श्रेय भी अमर सिंह ही लेलेते।

बहरहाल बच्चन परिवार पर किसी न किसी बहाने निशाना साधने का उनका मिशन अभी भी बदस्तूर जारी है। वे अभी तक इस परिवार पर आक्रमण कर सुर्ख़ियां बटोरने का कोई भी अवसर गंवाना नहीं चाहते। अभी पिछले दिनों उन्होंने जाया बच्चन द्वारा राज्य सभा में दिए गए एक बयान को लेकर न केवल जया बच्चन बल्कि उनके पूरे परिवार पर निशाना साधा। जया बच्चन इंटरनेट क्रांति के युग में आए तकनीकी आंदोलन के दौर में पोनोग्राफ़ी या चलचित्रों के अश्लील दृश्यों को न देखने के लिए अपने हाथों के रिमोट के इस्तेमाल का सुझाव दे रही थीं। इसी बात को लेकर अमर सिंह ने उन्हें व उनके पूरे परिवार को “उपदेश ” पिला डाला। उनहोंने कहा की सामाजिक रिमोट कंट्रोल तो आपके हाथ में है। आपके पति (अमिताभ बच्चन) जुम्मा चुम्मा देदे और आज रपट जाएं जैसे दृश्य क्यों करते हैं। ऐश्वर्य के लिए उन्होंने कहा की वह ऐ दिल है मुश्किल में गंदे दृश्य क्यों शूट करती हैं। अभिषेक धूम में लगभग नग्न नायिका के साथ दृश्य क्यों देते हैं। उनका कहना था कि पहले अपने घर में सुधार कीजिये फिर इस विषय पर बाहर कुछ कहिये। अंत में उनहोंने पूरे फ़िल्म जगत को समाज में नारियों व छोटी बच्चियों के साथ होने वाली दुर्दशा का ज़िम्मेदार बताया।

अपने “प्रवचन” में अमर सिंह को बच्चन परिवार द्वारा फ़िल्माए गए उत्तेजक दृश्य तो याद आए परन्तु जया प्रदा के एक भी ऐसे दृश्य याद नहीं आए? और बच्चन परिवार पर भी उन्होंने जिन फ़िल्मी मुखड़ों व दृश्यों को लेकर आपत्ति जताई वह सभी उस समय फ़िल्माए व देखे जा चुके थे जब अमर सिंह इस परिवार के सदस्य के रूप में हर वक़्त उनके साथ दिखाई देते थे। उस समय उन्होंने अपनी इस “पीड़ा” से बच्चन परिवार को अवगत क्यों नहीं करवाया? संबंध टूटते ही उन्हें आज रपट जाएं और जुम्मा चुम्मा देदे में अभद्रता नज़र आने लगी? दूसरी बात यह कि फ़िल्म जगत का काम लोगों का मनोरंजन करना होता है न कि गन्दी राजनीति करने की प्रेरणा देना। फ़िल्मों में प्यार-मोहब्बत, इश्क़, चोरी, डकैती, कर्तव्य, अधिकार, मानवता, अमानवीयता, शिष्टाचार, अशिष्टता, गीत, संगीत, अच्छाई -बुराई, मार पीट, दंगा, फ़साद करुणा, प्रेम, व्यंग्य, देशप्रेम जैसे ज़रूरत के मुताबिक़ सैकड़ों पहलुओं को साथ लेकर किसी कहानी का फ़िल्मांकन किया जाता है। किसी दर्शक को फ़िल्म का कोई दृश्य पसंद आता है तो किसी को कोई दूसरा पहलू अच्छा लगता है। निश्चित रूप से वर्तमान समय में पहले से कुछ ज़्यादा अभद्रता के दृश्य फ़िल्माए जाने लगे हैं। परन्तु इसके लिए अकेले फ़िल्म जगत को ही ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अमर सिंह के इस प्रकार के “अमर वचन” उपदेश कम बच्चन परिवार पर आक्रमण करने का उनका पारंपरिक अंदाज़ अधिक प्रतीत होते हैं। उन्हें मीडिया में सुर्ख़ियां बटोरने की ख़ातिर दिए जाने वाले इस प्रकार के “अमर वचनों” से परहेज़ करना चाहिए।

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