नई दिल्ली । गृह मंत्री अमित शाह ने स्पष्ट किया है कि जम्मू कश्मीर के बारे में विशेष प्रावधान करने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी घोषित करने के लिये संविधान में संशोधन करने की कानूनी बाध्यता नहीं है। शाह ने सोमवार को जम्मू कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी घोषित करने संबंधी संकल्प को राज्यसभा में पेश करते हुये बताया कि इस प्रावधान को राष्ट्रपति की महज एक अधिसूचना के माध्यम से संशोधित किया जा सकता है। सपा के रामगोपाल यादव ने सदन में व्यवस्था का प्रश्न उठाते हुये कहा कि संविधान के किसी प्रावधान में किसी भी प्रकार का संशोधन करने के लिये संविधान संशोधन करना अनिवार्य है। उन्होंने गृह मंत्री से पूछा कि ऐसे में सरकार ने संविधान संशोधन विधेयक के बिना अनुच्छेद 370 को हटाने का संकल्प कैसे प्रस्तुत किया है। इसके जवाब में शाह ने सदन को बताया कि अनुच्छेद 370 के खंड तीन में राष्ट्रपति को एक अधिसूचना के द्वारा अनुच्छेद 370 को खत्म करने का अधिकार देने का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि इस प्रावधान के साथ ही संविधान में एक शर्त यह जोड़ी गयी है कि अनुच्छेद 370 में बदलाव से पहले राज्य की विधानसभा से सहमति लेनी होगी। उन्होंने कहा कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण इस बाध्यता का पालन अनिवार्य नहीं रह जाता है। उन्होंने सदन को बताया, ‘‘आज सुबह राष्ट्रपति ने एक अधिसूचना जारी कर संवैधानिक आदेश पारित किया है। इसमें कहा गया है कि जम्मू कश्मीर में विधानसभा वजूद में नहीं होने के कारण राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य विधानसभा के समस्त अधिकार संसद के दोनों सदनों में निहित हैं। इसलिये राष्ट्रपति के आदेश को दोनों सदनों के साधारण बहुमत के द्वारा संसद से पारित कर सकते हैं। ’’शाह ने स्पष्ट किया कि सरकार की ओर से पहली बार इस तरह की पहल नहीं की गयी है। इसके पहले कांग्रेस की सरकार 1952 और 1962 में इस प्रक्रिया का पालन करते हुये अनुच्छेद 370 में संशोधन कर चुकी है। मौजूदा सरकार ने भी इसी प्रक्रिया का पालन किया है।